🌍जब सैटेलाइट्स डेटा ही गायब हो जाए तो विज्ञान क्या करेगा? क्या पृथ्वी के हालात अनदेखे रह जाएंगे?
जब सैटेलाइट्स निशाने पर हों, तो वैज्ञानिकों को क्लाइमेट डेटा की चिंता क्यों सताने लगी है?
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🧊 परिचय: जब सैटेलाइट्स डेटा ही गायब हो जाए तो विज्ञान क्या करेगा?
जलवायु परिवर्तन यानी Climate Change आज मानवता की सबसे बड़ी चुनौती है। धरती के तापमान में बढ़ोतरी, बर्फ की चादर का पिघलना, समुद्र का स्तर बढ़ना — ये सभी संकट सटीक डेटा के बिना समझना नामुमकिन है।
और ये डेटा कहाँ से आता है?
अंतरिक्ष में घूमते सैटेलाइट्स से!
लेकिन अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के कार्यकाल में वैज्ञानिकों के मन में एक डर पैदा हुआ — कहीं ये सैटेलाइट्स ही बंद न कर दिए जाएं!
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🚨 मुद्दा: ट्रंप प्रशासन और सैटेलाइट फंडिंग में कटौती
ट्रंप सरकार ने अपने बजट प्रस्ताव में NASA और NOAA जैसे संस्थानों की क्लाइमेट रिसर्च फंडिंग कम करने की बात कही थी। इसका मतलब था:
नए सैटेलाइट लॉन्च पर रोक
मौजूदा डेटा प्रोग्राम्स में कटौती
पर्यावरण और जलवायु डेटा को “अनावश्यक खर्च” करार देना
> ❝ विज्ञान को “राजनीति” के चश्मे से देखना ख़तरनाक हो सकता है। ❞
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🛰️ सैटेलाइट्स क्यों हैं इतने ज़रूरी?
सैटेलाइट्स हमें बताते हैं:
वायुमंडल का तापमान और आर्द्रता (Humidity)
समुद्रों का तापमान और ऊँचाई
जंगलों की कटाई
आइस कैप्स का पिघलना
तूफान और प्राकृतिक आपदाओं की चेतावनी
इन आंकड़ों के बिना वैज्ञानिक अंधेरे में होंगे और दुनिया को जलवायु परिवर्तन से लड़ने में मुश्किल होगी।
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🧪 वैज्ञानिकों की चिंता: “डाटा गैप”
ट्रंप की नीतियों से वैज्ञानिकों ने डर जताया कि अगर ये कटौती होती है, तो:
“Data Gap” आ जाएगा यानी समय पर जानकारी नहीं मिल पाएगी
मौसम की भविष्यवाणी कमजोर हो जाएगी
जलवायु परिवर्तन को ट्रैक करना मुश्किल होगा
इंटरनेशनल क्लाइमेट एग्रीमेंट्स में अमेरिका पिछड़ जाएगा
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🌡️ राजनीति बनाम विज्ञान: क्यों हो रहा है टकराव?
ट्रंप प्रशासन ने कई बार Climate Change को “बहाना” और “मिथक” बताया। इसके विपरीत वैज्ञानिक इस बात पर ज़ोर देते रहे कि:
> “जलवायु परिवर्तन एक वास्तविक संकट है — और इसे मापा नहीं गया, तो रोका नहीं जा सकता।”
यह विवाद सिर्फ फंडिंग का नहीं, दृष्टिकोण का था।
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🔍 सैटेलाइट्स डेटा ही गायब हुआ तो क्या होंगे इसके वैश्विक प्रभाव?
1. 🌐 दूसरे देशों को डेटा की सप्लाई रुक सकती है
2. 🌪️ आपदा प्रबंधन में देरी और क्षति बढ़ेगी
3. 📉 अंतरराष्ट्रीय जलवायु रिपोर्टिंग कमजोर होगी
4. 🌳 पर्यावरण एक्टिविज़्म की वैधता को चोट पहुंचेगी
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🧭 उम्मीद की किरण: विरोध और जागरूकता
हज़ारों वैज्ञानिकों और संगठनों ने इस नीति का विरोध किया
“March for Science” जैसे आंदोलन खड़े हुए
कई निजी संगठनों ने डेटा संग्रहण के वैकल्पिक रास्ते शुरू किए
कुछ राज्यों और देशों ने अपनी क्लाइमेट सैटेलाइट परियोजनाएँ शुरू कीं
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✅ निष्कर्ष: सैटेलाइट्स सिर्फ मशीनें नहीं, मानवता की आंखें हैं
ट्रंप की नीतियों ने एक सवाल खड़ा किया — क्या हम अपनी आंखों पर पट्टी बाँधकर जलवायु परिवर्तन से लड़ सकते हैं?
वैज्ञानिकों की चेतावनी थी — अगर डेटा ही नहीं होगा, तो निर्णय कैसे होंगे?
> “सत्य को देखना है, तो आकाश में उड़ती सैटेलाइट्स को ज़रूरी बनाना होगा।”
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